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नाड़ी शोधन प्राणायाम
प्रारंभिक स्थिति : आराम से सीधे बैठने की अवस्था। ध्यान दें : श्वास की प्रक्रिया पर। दोहराव : हर नथुने (नासाछिद्र) के साथ बीस बार दोहरायें।
अभ्यास :
बिल्कुल तनाव रहित बैठें और कुछ समय तक सामान्य श्वास पर चित्त एकाग्र करें। > फिर दायां हाथ उठाएं, भोहं के केन्द्र में अनामिका और मध्यमा अँगुली को रखें (प्राणायाम मुद्रा) और दायें नथुने को अँगूठे से बंद रखें। > बायें नथुने से बीस बार श्वास लें। श्वास सामान्य से कुछ गहरा और पेट की ओर जाता हो। > दायें नथुने को फिर खोले और बायें नथुने को अनामिका से बंद करें। > दायें नथुने से बीस बार श्वास लें। श्वास सामान्य से थोड़ा गहरा और पेट की ओर जाता हो। > हाथ को घुटनों पर ले आएं और श्वास के सामान्य प्रभाव का निरीक्षण करें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।
नाड़ी शोधन स्तर 2
प्रारंभिक स्थिति :
सुविधाजनक, सीधे तनकर बैठने की स्थिति।
ध्यान दें :
श्वास की प्रक्रिया पर।
दोहराना :
बायें नथूने के साथ प्रारम्भ करते हुए 20 चक्र और दायें (नथुने) के साथ शुरू करते हुए 20 चक्र।
अभ्यास :
आप अपनी सामान्य श्वास पर 3-5 मिनट के लिए ध्यान दें। पूरी सुविधा के साथ बैठ जायें। रीढ़ सीधी तनी हुई रहे, फिर दायां हाथ प्राणायाम मुद्रा के लिए उठायें। > दायें नथुने को अंगूठे से बन्द करें और बायें नथुने से सामान्य से थोड़ा गहरा सांस लें। दायां नथुना खोल दें। > इसी समय बायें नथुने को अनामिका से बन्द करें। धीरे-धीरे व आराम से दायें नथुने से रेचक करें। > अदल-बदल कर श्वास लेने की इस प्रक्रिया के 20 चक्र पूरे करें। > हाथ को घुटने पर वापस ले आयें और सामान्य श्वास पर 2-3 मिनट ध्यान एकाग्र करें। > पुन: दायें हाथ को प्राणायाम मुद्रा के लिए उठायें। बायें नथूने को दाहिने हाथ की अनामिका से बंद करें और दायें नथूने से गहरा पूरक करें।> बायें नथुने को खोल दें, इसी समय दायें नथुने को अंगूठे से बन्द करें। धीरे-धीरे बायें नथुने से रेचक करें। > अदल-बदल कर श्वास लेने की इस प्रक्रिया के 20 चक्र पूरे करें। > हाथ को घुटने पर वापस ले जायें और सामान्य श्वास पर 3-5 मिनट के लिए चित्त एकाग्र करें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।
(नाड़ी शोधन स्तर 3)
प्रारंभिक स्थिति :
ध्यान मुद्रा।
ध्यान दें :
श्वास प्रक्रिया पर।
दोहराना :
10 चक्र बायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए और 10 चक्र दायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए।
अभ्यास :
श्वास पर एक मिनट ध्यान देते हुए प्रारम्भ करें। > पूरक और रेचक का निरीक्षण करें, फिर दोनों नथुनों में श्वास के प्रवाह पर अपना ध्यान रखें। > दायां हाथ प्राणायाम मुद्रा में रखें। > दायां नथुना अंगूठे से बन्द कर दें और बायें नथुने से गहरी श्वास लें। > फिर दायां नथुना खोल दें, इसी समय बायें नथुने को अनामिका अंगुली से बन्द करें और धीरे-धीरे व आराम से दाहिने नथुने से श्वास बाहर निकालें। > दायें नथुने से फिर पूरक करें और बायें नथुने से रेचक करें। एक चक्र : पूरक बायें से — रेचक दायें से — पूरक दायें से — रेचक बायें से। 10 चक्रों के बाद हाथ को घुटने पर ले आयें और एक मिनट तक सामान्य श्वास पर चित्त एकाग्र करें। > प्राणयाम मुद्रा में लौट आयें और श्वास व्यायाम दायें नथुने से प्रारम्भ करते हुए दोहरायें : पूरक दायें - रेचक बायें - पूरक बायें - रेचक दायें। 10 चक्रों के बाद हाथ घुटनों पर ले आयें। एक मिनट तक सामान्य श्वास पर और हृदय की धड़कन की लय-ताल पर ध्यान लगायें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।
नोट :
श्वास प्रक्रिया का यह प्रकार अनुलोम विलोम या अदल-बदल कर नथुने से श्वास लेना भी कहलाता है।
नाड़ी शोधन स्तर 4
प्रारंभिक स्थिति : ध्यान मुद्रा। ध्यान दें : श्वास-प्रक्रिया पर। दोहराना : बाएं नथुने से प्रारम्भ करते हुए 5 बार और दाएं नथुने से प्रारम्भ करते हुए 5 बार।
अभ्यास :
सामान्य तनावहीन श्वास पर 5 मिनट ध्यान दें फिर हाथ को प्राणायाम मुद्रा में उठायें। श्वास को मन में गिनते जायें। अंगूठे से दायां नथुना बंद करें और बाएं नथुने से पूरक करते हुए 4 तक संख्या गिनें। दोनों नथुने बंद करें और 16 की संख्या गिनने तक श्वास रोकें। दायां नथुना खोलें और 8 की संख्या गिनने तक रेचक करें। दोनों नथुने बंद करें और 16 की संख्या गिनने तक श्वास रोकें। दायां नथुना खोलें और 4 की संख्या गिनने तक पूरक करें। दोनों नथुने बंद करें और 16 की संख्या गिनने तक श्वास रोकें। बायां नथुना खोलें और 8 की संख्या गिनने तक रेचक करें। दोनों नथुने बंद करें और 16 की संख्या गिनने तक श्वास रोकें। यह तारतम्य एक चक्र कहलाता है। 5 चक्रों का अभ्यास करें एवं फिर, सामान्य तनावहीन श्वास पर चित्त एकाग्र करें। कुछ समय पश्चात् दायें नथुने से शुरु करके पूरक करते हुए इस व्यायाम को दोहरायें। 5 चक्र करें।
लाभ :
नाड़ी शोधन प्राणयाम रक्त और श्वासतंत्र को शुद्ध करता है। गहरा श्वास रक्त को ऑक्सीजन (प्राणवायु) से भर देता है। यह प्राणायाम श्वास प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है और स्नायुतंत्र को संतुलित रखता है। यह चिन्ताओं और सिर दर्द को दूर करने में सहायता करता है।
इस प्राणायाम के अभ्यास पर टिप्पणी :
ऊपर दी गई संख्या गिनने तक के 5 चक्र का अभ्यास नहीं कर सकें तो 4(पूरक) : 4(कुंभक) : 8(रेचक) के अनुपात में पूरक व अभ्यास करने के बाद ही कुंभक करने से शुरू करें। जब यह सुविधाजनक हो जाए, तब इसे 4:8:8 तक व बाद में 4:16:8 तक बढ़ा दें। इस प्रकार, कुछ समय तक अभ्यास करने के बाद रेचक के पश्चात् श्वास रोकने को भी अभ्यास में शामिल कर लें। भली-भांति परिचित हो जाने के बाद कम समय-अवधि के 4:16:8:8 के अनुपात से प्रारम्भ करते हुए निर्धारित 4:16:8:16 अनुपात तक आ जाएं। चक्र की लम्बाई आगे भी बढ़ाई जा सकती है। किन्तु अनुपात वही रहना चाहिए यथा 5:20:10:20, 8:32:16:32।
सावधानी :
सुविधा से जितनी देर तक संभव हो श्वास उतनी देर ही रोकें। यदि अस्थमा या हृदय रोग से ग्रस्त हो तो श्वास न रोकें।